Pages

Thursday, February 2, 2012

बाइबिल से आशीषित वचन रोमियो १२:१२

 
" आशा में आनंदित रहो , क्लेश में स्थिर रहो , प्रार्थना में नित्य लगे रहो . "  रोमियो १२:१२ 
      
 १. आनंदित -   पौलुस हमें इस वचन के माध्यम से आनंद से जुडी  बाते बताना चाहता है , यदि हम केवल इस वचन के " आशा में आनंदित रहो" इस भाग पर मनन करे तो हमें पौलुस ये बताना चाहता है हमे सदैव
आशा में आनंद मनाये क्युकी हमारी आशा प्रभु यीशु मसीह है उसी के द्वारा हमे सब वस्तुए प्राप्त हुई . ......सो हमारी आस यीशु मसीह हो जिसने हमें हमारे पापों से छुड़ाने के लिए अपने प्राण दे दिए . .....और उस पर विश्वास करना ही हमारी सबसे बड़ी आशा है क्युकी इसमें हमे केवल रोशनी मिलती है और सारी बाते सकरात्मक होती चली जाती है और हमारा जीवन आनंद में बदल जाता है . सो हम आशा में आनंदित रहे .  
   २.  स्थिर -  ........ ... दूसरी बात जो पौलुस इस वचन के माध्यम से हमसे कहता है वो यह है चाहे हम पर कितने दुःख आये मेह बरसे आंधियां आये परन्तु उस दुःख के बादल में घिरे रहने पर भी हम स्थिर रहे . .....जैसा हमारा मसीह यीशु जिसने हमारे लिए दुःख उठाया यहाँ तक की उसके मुह पर थूका गया उसके कपडे फाड़े गए उसे ठठो में उड़ाया गया फिर भी वो उस क्लेश में स्थिर रहा . .....और हमे नमूना दे गया की हम भी उसे देखे और क्लेश में स्थिर रहना सीखें
 
३. नित्य लगे रहो ............ तीसरी और अंतिम बात जो हमे ये वचन सिखाता है और हमे आशीषित करता है वो यह है की हम नित्य प्रार्थना में लगे रहे . ......प्रार्थना एक ऐसा आत्मिक हथियार है जो कठोर से कठोर ह्रदय को परिवर्तित कर देता है . हम स्मरण रखे यीशु मसीह ने हमेशा हर बातों के लिए स्वर्गीय पिता से प्रार्थना की . ..... प्रियो हम भी नित्य प्रार्थना करने में लगे रहे प्रार्थना का अर्थ परमेश्वर से बातचीत करना है ,.... हम जितना परमेश्वर से नजदीकी बढ़ाएंगे वो हमें अपनी आशीषों से भर देगा .......सो हम अपने जीवन में इस अवसर न खोये कही ऐसा न हो जब हम बात करना चाहे तो परमेश्वर हमसे बात न करे सो मेरे प्रियो हमारी परिस्थिति कैसी भी हो हम निरंतर प्रार्थना में लगे रहे . ..... निश्चय हमारे जीवन की सारी दुविधा , परेशानी दूर हो जाएगी और हम आशीषों को पाने के भागीदार बनेंगे .
                       प्रभु आपको इन वचनों के द्वारा आशीष दे और ये वचन आपके जीवन में अनगिनत आशीषे ले आये यही मेरी प्रार्थना है अप सब लोगो के  लिए .......... आमीन !!
                                                                                                प्रभु यीशु में आपकी बहिन 
                                                                                                                 निशा सिंह

Sunday, September 4, 2011

शिक्षक

रोमियों ११: ३३- ३६
मत्ती २३ : - १२
शीषक
की परिभाषा परमेश्वर के वचन अनुसार इस तरह से है -
भंडारी
- कुर :, :१६, १७, मत्ती १३: 54
पंडित
- पतरस : यहूना १४ : - ११
दोषमुक्त
- इफिसियों : २६- २७
किसान
- कुर :
दूर
दिशा मान - लुका : ३९-४० , २२: ३४ , मत्ती २६: २४- २६
नमूना
- यहूना १३:१२-१६ , पतरस : २१
सुधारक
- यहूना : , मरकुस ११: १५- १७
प्रभु
आपको आशीष दे

Tuesday, August 16, 2011

परन्तु जितनो ने उसे ग्रहण किया , उसने उन्हें परमेश्वर की संतान होने का अधिकार दिया , अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास करते है । - युहन्ना १: १२

Saturday, August 6, 2011

यीशु मेरा सच्चा मित्र







जय मसीह कि,




सर्वप्रथम आप सभो को प्रभु यीशु मसीह के प्रिय और मधुर नाम से फ्रेंड शिप डे कि शुभकामनाये। जैसा कि आज का विषय "यीशु मेरा सच्चा मित्र" आज इसे हम परमेश्वर क वचन से सीखेंगे। यदि आप परमेश्वर के वचन से देखे तो नीतिवचन १७:१७ में " मित्र सब समयों में प्रेम रखता है , और विपत्ति के दीन भाई बन जाता है।" बहुत अच्छी बात परमेश्वर के वचन में सुलेमान राजा ने कहा मेरे प्रिय भाइयो और बहनों में आप लोगो से ये कहना चाहती हूँ क्या आपका कोई मित्र है ? यदि हाँ तो कैसी मित्रता है आपकी उनके साथ ? क्या वो आपका सच्चा मित्र है ? इन सारे सवालों के जवाब आपको कही और नहीं बल्कि परमेश्वर के वचन से मिलेंगे । और ये आपको बतायेगा कि आपका सच्चा मित्र कौन हो सकता है। मेरे प्रियो यहाँ जो वचन आपके समुख रखा गया है उसके अनुसार यहाँ दो बाते विशेष है (१) प्रेम , (२) भाई । इन्ही दो बातो को हम देखेंगे कि हमारा सच्चा मित्र इसी संसार से है या फी यीशु मसीह है।










प्रेम - किसी के लिए ये प्रेम शब्द कहने में बहुत सरल है लेकिन क्या अपने कभी इस शब्द का मतलब samjhne की कोशिश कि ? आखिर ये प्रेम है क्या ? मेरे प्रियो ये प्रेम शब्द कहा से आया किसने किया प्रेम ? १ यहुन्ना ४: ९ " प्रेम इस में नहीं कि हमने परमेश्वर से प्रेम किया, परन्तु इसमें है कि उसने हमसे प्रेम किया और हमारे पापों के प्रयाश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा। " जब हमारा कोई मित्र होता है तो हम उससे प्रेम करते है लेकिन क्या आप जानते है कि जिसे अपने अपना मित्र बनाया है क्या वो भिअप्से वैसा ही प्रेम करता / करती है जैसा आप उससे करते है ? जैसा नितिवचन में लिखा है कि "मित्र सब समयों में प्रेम रखता है" क्या आपका जो मित्र है आपसे हर समयों में प्रेम रखता है ? नहीं मेरे प्रियो ऐसा नहीं होता शयद ही कोई ऐसा हो जो प्रेम रखे यदि आपके मित्र के साथ आपकी बहस या लड़ाई हो जाये तो वो शयद आपसे बात न करे या फिर आपके और आपके मित्रके बिच में बातचीत बंद हो जाये तो क्या यहाँ पर आपके और आपके मित्र के बिच में प्रेम कहा रहा? परन्तु मेरे प्रियो मेरा और आपका यीशु हमसे प्रेम करता है हम उससे यदि याद न करे भूल जाये फिर भी वो आपको और मुझको स्मरण रखता है और हमसे प्रेम करता है अप और में उससे प्रेम न करे या भूल जाये पर वो हमेशा हमे याद रखता है और हमसे प्रेम करता है। हम इस बात को न भूले कि यहुन्ना ३:१६ में लिखा है " परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया " हाँ मेरे प्रियो ये परमेश्वर का प्रेम है कितना बड़ा है उसका प्रेम कि उसने अपने बेटे को हमारे लिए दे दिया अब आप ये बताये क्या कोई हमसे इतना प्रेम कर सकता है और जब यीशु मसीह हमारे बिच में रहे तो उन्होंने भी सभी लोगो से एक सा प्रेम रखा। मेरे प्रियो क्या आप जानते है कि परमेश्वर का मित्र कौन हुआ ? इब्राहीम परमेश्वर का मित्र कहलाया वो दोनों मित्र थे और ये मित्रता इब्राहीम ने निभाई लेकिन अज हम यीशु मसीह से मित्रता नहीं निभा पाते। मेरे प्रियो आज हमने संसार से मित्रता कर रखी है इस बात का प्रमाण हमे पवित्र धर्मशास्त्र से ही मिलता है आये देखिये याकूब ४: १- ४ यहाँ इन चार वचनों में बतया गया है यदि कोई मनुष्य संसार से मित्रता रखता है अर्थात वो लड़ाई झगडे का करण बने या भोग विलास में लगे रहे या फिर लालसा करते है और हत्या करते है और इन सब के बाद जब कुछ पाने में असमर्थ हो जाते है और सांसारिक मित्र त्याग देते है तो कहते है कि हम मांगते है लेकिन हमे मिलता नहीं। आखिर ऐसा क्यों ? मेरे प्रियो यदि आप संसार से मित्रता करेंगे तो आप खुद को परमेश्वर का शत्रु बना लेंगे। सो मेरे प्रियो हम उसके प्रेम को समझे जैसा प्रेम परमेश्वर हमसे करते है वो प्रेम हमारा कोई और मित्र नहीं कर सकता। एक अछे मित्र कि ये उत्तम बात है कि वो पाने मित्र से प्रेम करता है।






भाई - दूसरी बात जो हम देखते है एक अच्छा मित्र विपत्ति के दिनों में हमारा भाई बन जाता है। जीवन के किसी न किसी मोड़ पर कभी ऐसा समय आता है जब हम विपत्ति में होते है या फिर हमारा मित्र इस स्थिति में हम किस रीतिसे उसके भाई हुए या वो हमारा भाई हुआ ? परन्तु आप इस बात कोभी स्मरण रखे वचन में लिखा है हमारा परमेश्वर हमे कभी नहीं त्यागता न कभी छोड़ता है वो हमारे साथ हमेशा रहता है। मेरे प्रियो परमेश्वर जैसा यीशु मसीह का पिता है वैसे ही हमारा भी है और इस नाते यीशु मसीह हमारा भाई है हाँ मेरे प्रियो वो हमारा भाई है और जब हम पर विपत्ति आती है और जब हम उसको पुकारते है तो वो हमारा भाई बनकर हमारे साथ हो लेता है हमारी सहायता करता है। मेरे प्रियो हम संसार में रहकर केवल अपने मित्रो कि संख्या बढ़ाते है क्या आप जानते है इस विषय में परमेश्वर का वचन क्या कहता है निति वचन १८: २४ " मित्रो के बढ़ने से तो नाश होता है, परन्तु ऐसा मित्र होता है , जो भाई से भी अधिक मिला रहता है। " सच मेरे प्रियो वो हमारे विपत्ति के दिनों में हमारा भाई बनजाता है और उससे अधिक हमसे मिला रहता है ।





ये तो बात हुई धर्मशास्त्र हमे मित्रता के बारे में क्या बताता है परन्तु अब सवाल ये है कि हम कैसे यीशु मसीह के मित्र बने सो ये भी हम [अवित्र धर्मशास्त्र से सीखेंगे यहुन्ना १५ : १२ - १५ "मेरी आज्ञा यह है कि जैसे मैंने तुमसे प्रेम किया, वैसे ही तुम भी एक दुसरे से प्रेम करो। इससे महँ प्रेम और किसी का नहीं , कि कोई अपने मित्रों के लिए अपना प्राण दे। जो आज्ञा में तुम्हे देता हूँ, यदि उसे मनो तो तुम मेरे मित्र हो। अबसे में तुम्हे दास नहीं कहूँगा, क्युकी दास नहीं जनता कि उसका स्वामी क्या करता है , परन्तु मैंने तुम्हे मित्र कहा है, क्युकी मित्र वे सब बाते जो मैंने अपने पिता से सुनी है तुम्हे बता दी है।" सो मेरे मित्रो यदि आपको यीशु मसीह का मित्र बनाना है तो जो आज्ञा उसने दी उन्हें हम मने और जो हमने उससे स्वामी और खुद को दास बना लिया है इस दुरी को दूर करे क्युकी स्वामी अपनी कोई बात दास से नहीं कहता वो तो केवल अपने मित्र से हर बात को कहता है हम सिर्फ अपने मित्रो से ही अपने दिल कि बाते कहते है। मेरे प्रियो यीशु मसीह ही हमारा साचा मित्र है जिससे हम साडी बाते कह सकते है और जो हमारा भाई भी है। हम एक गीत गाते है "यीशु क्या ही मित्र प्यारा " इस गीत को अब जब सुने तो आप ध्यान दीजिये कि यह गीत जो गया जाता है उसमे उसकी मित्रता का कैसा वर्णनं है। मुझे आप सभो से से पूरी आशा है कि आप अपने जीवनमें सही मित्र को चुनेगे। प्रभु आपको इन वचनों के द्वारा आशीष दे।








प्रभु यीशु में आपकी




बहिन निशा सिंह

यीशु मेरा सच्चा मित्र

Thursday, August 4, 2011

पहाड़ी उपदेश - धन्य वचन


जय मसीह की ,

प्रभु यीशु में मेरे प्रियो आज में यहाँ परमेश्वर के वचन को आपके साथ बाँट रही हूँ। आज में किसी वचन को अपने शब्द में बयां नहीं कर रही हूँ , क्यूंकि ये वचन अपने आप में पूर्ण है बस हमे इस वचन को ध्यान से पढना होगा।

ये धन्य वचन सच में हमे धन्य करते है अगर हम इसमें कही हुई बातों को ध्यान से पढ़े और उनका पालन करे तो हमे परमेश्वर आशिशो से भर देंगे। सो आये हम देखे कि पहाड़ पर चढ़ कर यीशु मसीह ने धन्य वचन में क्या कहा ये हमे मत्ती ५: ३- १२ में मिलता है यहाँ इस प्रकार लिखा हुआ है :

  1. धन्य है वे जो मन के दीन hई , क्युकी स्वर्ग का राज्य उन्ही का है।

  2. धन्य है वे जो शोक करते है , क्युकी वे सांत्वना पाएंगे।

  3. धन्य है वे जो नम्र है , क्युकी वे पृथ्वी के उतराधिकारी होंगे

  4. धन्य है वे जो धर्म के भूखे और प्यासे है , क्युकी वे तृप्त किये जायेंगे।

  5. धन्य है वे जो दयावंत है , क्युकी उन पर दया की जाएगी।

  6. धन्य है वे जिनके मन शुद्ध है , क्युकी वे परमेश्वर को देखेंगे।

  7. धन्य है वे जो मेल करने वाले है , क्युकी वे परमेश्वर के पुत्र कहलायेंगे।

  8. धन्य है वे जो धार्मिकता के कारन सताए जाते है , क्युकी स्वर्ग का राज्य उन्ही का है।

  9. धन्य हो तुम , जब लोग मेरे कारन तुम्हारी निंदा करे , तुम्हे यातना दे और झूठ बोलकर तुम्हारे विरुद्ध सब प्रकार की बाते कहे - आनादित और मग्न हो , क्युकी स्वर्ग में तुम्हारा प्रतिफल महान है। उन्होंने तो उन नबियों को भी जो तुमसे पहले हुए इसी प्रकार सताया था।