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Thursday, August 4, 2011

पहाड़ी उपदेश - धन्य वचन


जय मसीह की ,

प्रभु यीशु में मेरे प्रियो आज में यहाँ परमेश्वर के वचन को आपके साथ बाँट रही हूँ। आज में किसी वचन को अपने शब्द में बयां नहीं कर रही हूँ , क्यूंकि ये वचन अपने आप में पूर्ण है बस हमे इस वचन को ध्यान से पढना होगा।

ये धन्य वचन सच में हमे धन्य करते है अगर हम इसमें कही हुई बातों को ध्यान से पढ़े और उनका पालन करे तो हमे परमेश्वर आशिशो से भर देंगे। सो आये हम देखे कि पहाड़ पर चढ़ कर यीशु मसीह ने धन्य वचन में क्या कहा ये हमे मत्ती ५: ३- १२ में मिलता है यहाँ इस प्रकार लिखा हुआ है :

  1. धन्य है वे जो मन के दीन hई , क्युकी स्वर्ग का राज्य उन्ही का है।

  2. धन्य है वे जो शोक करते है , क्युकी वे सांत्वना पाएंगे।

  3. धन्य है वे जो नम्र है , क्युकी वे पृथ्वी के उतराधिकारी होंगे

  4. धन्य है वे जो धर्म के भूखे और प्यासे है , क्युकी वे तृप्त किये जायेंगे।

  5. धन्य है वे जो दयावंत है , क्युकी उन पर दया की जाएगी।

  6. धन्य है वे जिनके मन शुद्ध है , क्युकी वे परमेश्वर को देखेंगे।

  7. धन्य है वे जो मेल करने वाले है , क्युकी वे परमेश्वर के पुत्र कहलायेंगे।

  8. धन्य है वे जो धार्मिकता के कारन सताए जाते है , क्युकी स्वर्ग का राज्य उन्ही का है।

  9. धन्य हो तुम , जब लोग मेरे कारन तुम्हारी निंदा करे , तुम्हे यातना दे और झूठ बोलकर तुम्हारे विरुद्ध सब प्रकार की बाते कहे - आनादित और मग्न हो , क्युकी स्वर्ग में तुम्हारा प्रतिफल महान है। उन्होंने तो उन नबियों को भी जो तुमसे पहले हुए इसी प्रकार सताया था।

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